पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है इसलिए इसे सोलह श्राद्ध कहते हैं। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक 16 श्राद्ध यानी सोलह तिथियां होती हैं। प्रत्येक तिथि का अलग अलग महत्व है। किस किसी के भी पितर या पूर्व की जिस तिथि पर निधन हुआ है उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म तर्पण पिंडदान आदि करना चाहिए। यदि तिथि नहीं पता हो तो सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करें। इसके अलावा प्रत्येक तिथि पर श्राद्ध करने के महत्व और नियम को जानें।
पूर्णिमा श्राद्ध
पूर्णिमा को जिनका निधन हुआ है तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या सर्वपितृ अमावस्या को भी किया जा सकता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा कहा जाता है।