उत्तराखण्ड

बिना जांच पड़ताल किये कदम बढ़ा रहा है “उत्तराखण्ड वन विभाग”

राज शेखर भट्ट

किसी भी विभाग में राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण जब दोषियों का बचाव करने के लिए अनुभवी तथा प्रतिभावान कार्मिकों की उपेक्षा होती है और उन्हें नीचा दिखाने तथा हतोहस्ताहित करने के प्रयास के लिए विभागीय तंत्र एकजुट हो जाता है, तब सरकारी संपत्ति का नुकसान होने के साथ उस विभाग को कई मायनों में अपमान और दुर्गति का सामना भी करना ही पड़ता है, क्योंकि सच कभी झुकता नहीं। आजकल कुछ ऐसा ही वन विभाग में देखने को मिल रहा है। देहरादून वन प्रभाग के सेवानिवृत्त सर्वेयर श्री सी.पी. डोभाल द्वारा आरक्षित वन भूमि में हुए अतिक्रमणों की जानकारी सरकारी गजट / अभिलेखों के आधार पर बार-बार विभागीय अधिकारियों को दी गई।

प्रभागीय वनाधिकारी स्तर से जांच होने पर आरक्षित वन में विभिन्न स्थानों पर अतिक्रमण किए जाने की पुष्टि हुई। देहरादून वन प्रभाग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी श्री राजीव धीमान के स्तर से उजागर अतिक्रमण पर संबंधित सर्वेयर श्री विजेंद्र पांडे के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर वन संरक्षक शिवालिक वृत को कार्रवाई हेतु कार्यवाही हेतु भेजा गया। अत्यन्त विलम्ब के पश्चात् एस.डी.ओ. मुनि की रेती वन प्रभाग को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। चूंकि मामला आरक्षित वन में अतिक्रमण से संबंधित तकनीकी था किंतु जांच अधिकारी द्वारा किसी भी सर्वेयर को शामिल नहीं किया गया और आनन फानन में अपनी जांच वन संरक्षक यमुना वृत को सौंप दी।

website average bounce rate

उपरोक्त कार्यवाही श्री डोभाल सेवानिवृत्ति सर्वेयर की शिकायत पर की गई थी। इसलिए श्री डोभाल सर्वेयर को जांच में शामिल किया जाना आवश्यक था। वन संरक्षक यमुना वृत/ दंडाधिकारी द्वारा इस पर जल्दबाजी में निर्णय जारी कर दिया गया, इस निर्णय पर सेवानिवृत्त सर्वेयर डोभाल ने विभाग को आड़े हाथ लेते हुए असहमति व्यक्त की और इस जांच/दंडादेश के विरूद्ध शिकायत उच्च स्तर / शासन स्तर पर अपने विरोध पत्रों द्वारा कर दी। उन्होंने आरोप लगाया गया की सभी स्तरों पर आरोपियों का पक्ष लेते हुए तो न तो सरकारी अभिलेखों को संज्ञान में लिया गया और ना ही शिकायतकर्ता होने के नाते उन्हें जांच में बुलाया/शामिल किया गया है। यह खुद ब खुद ही जांच पर संदेह पैदा करता है।

श्री डोभाल द्वारा यह मांग की जा रही है कि प्रकरण पर जांच प्रमुख वन संरक्षक (Hoff) द्वारा गठित टीम से करवाई जानी चाहिए जिसमें कि उनका पक्ष भी सुना जाए, इससे इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होगी तथा आरक्षित वन भूमि की सुरक्षा हो सकेगी। श्री डोभाल द्वारा यह बताया गया कि उनके द्वारा अभिलेखों का मुआयना कर कई विभिन्न मामलों में विभाग से सूचनायें मांगी जा रही हैं। ऐसे में उनके द्वारा मांगी गयी सूचनायें भविष्य में विभाग के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। यह बताया गया कि अपनी सेवा के दौरान अन्य विभागों एवं आम जनता के बीच श्री डोभाल की छवि वन भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में बेहद कड़क एवं बाल की खाल निकालने वाले सर्वेयर की रही है।

ऋषिकेश रेंज में टिहरी बांध विस्थापितों के पुनर्वास हेतु 680 एकड़ तथा अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIMS) के निर्माण हेतु लगभग 100 एकड़ भूमि का सर्वेक्षण तथा सीमांकन इनकी बड़ी उपलब्धि रही है। इस संबंध में इनके द्वारा बनाये गये मानचित्रों की अभी तक तारीफ होती है। किसी भी ग्राम की भूमि को आरक्षित वन बनाने के लिए सरकार द्वारा शासनादेश जारी करके वन बंदोबस्त अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं, जो कि उपजिलाधिकारी स्तर से कम के नहीं होते है। अक्सर उप जिलाधिकारी ही वन बंदोबस्त अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।

मौके पर सर्वेक्षण आदि बहुत प्रक्रियाओं से गुजरने/जांच परख किए जाने के बाद वन बंदोबस्त अधिकारी ग्राफ सीट पर संबंधित आरक्षित वन क्षेत्र के प्लाटिंग किए हुए क्षेत्र/मानचित्र की स्थिति को राजस्व मानचित्र में भी मुनारों सहित अंकित करते हैं, जिससे कि वन सीमा स्तम्भ (मुनारों) की स्थिति का पता चल सके कि संबंधित मुनारों की धरातलीय स्थिति कहां पर है। इतना सब होने के बाद इन सभी अभिलेखों को संलग्न करते हुए वन बंदोबस्त अधिकारी संबंधित अरण्यपाल (वन संरक्षक) को जांच करने हेतु भेजते हैं और अरण्यपाल इन्हें मय संलग्न संबंधित उप अरण्यपाल (प्रभागीय वनाधिकारी) को इस निर्देश से भेजते हैं कि उनके स्तर से इनकी जांच करके प्रमाणपत्र सहित इन्हे वापस उनके पास भेजा जाए ताकि तद्नुसार आरक्षित वन राजपत्र में प्रकाशित किए जाने हेतु शासन को ये अभिलेख भेजे जा सके।

उप अरण्यपाल स्तर से जांच पड़ताल किए जाने के बाद, संलग्नकों सहित ये अभिलेख, इस प्रमाणपत्र के साथ कि उनके स्तर से इनकी जांच की जा चुकी है, अरण्यपाल को वापस भेजे जाते हैं। इतनी जांच पड़ताल से संतुष्ट होने के पश्चात् ही तब जाकर अरण्यपाल राजपत्र में प्रकाशित करने हेतु इन अभिलेखों को शासन को भेजते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि काफी समय अवधि में बहुत जांच प्रक्रिया के बाद आरक्षित वन राजपत्र में प्रकाशित होते हैं। मसूरी वन प्रभाग में ग्राम वीरगिरवाली के अंतर्गत आरक्षित वन वर्ष 1970 में गजट नोटिविकेशन संख्या 6789 (14-ख-20 (382)-69 दिनांक 1 मई 1970 के द्वारा घोषित हुआ है, जो उतर प्रदेश सरकारी गजट 18 अप्रैल 1970 में प्रकाशित हुआ है।

इस गजट में अंकित आरक्षित वन के ‘सीमा विवरण’ में कालम 2 पर ‘मुनरो की स्थिति’ अंकित करते हुए आरक्षित वन क्षेत्र को 1 से लेकर 4 मुनरो से घेरा गया है और वन वन्दोबस्त अधिकारी ने दिनांक 29 सितंबर 1969 को यह मानचित्र जारी किये हैं, जिसमें आरक्षित वन क्षेत्र को घेरा गया है। लेकिन मसूरी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी श्री आशुतोष सिंह इस मानचित्र, जिसमें कि ये चारों मुनारे अंकित हैं। जिसे वन बंदोबस्त अधिकारी ने अरण्यपपाल (वन संरक्षक) शिवालिक वृत, देहरादून को अपने पत्रांक 1975 दिनांक 30 सितंबर 1969 में संलग्न करते हुए प्रेषित किया है। अरण्यपाल ने अपने पत्रांक R.No. 3454 / 6-8 दिनांक 30 सितम्बर 1969 से इसे संलग्नकों सहित जांच किए जाने हेतु उप अरण्यपाल (प्रभागीय वनाधिकारी), पश्चिमी देहरादून वन प्रभाग को प्रेषित किया।

जिस पर उप अरण्यपाल पश्चिमी देहरादून वन प्रभाग ने अपने स्तर से जांच करवा कर ये अभिलेख राजकीय गजट में प्रकाशनार्थ शासन को भेजे जाने के लिए, अपने पत्रांक 1609/4-14-1 दिनांक 17 नवंबर 1969 द्वारा लगभग डेढ़ महीने के पश्चात् अरण्यपाल शिवालिक वृत को जांच करके वापस भेज दिए। तदोपरांत यह आरक्षित वन उत्तर प्रदेश सरकारी गजट 18 अप्रैल 1970 में प्रकाशित हुआ है। प्रभागीय वनाधिकारी श्री आशुतोष सिंह इस मानचित्र को सज्ञान में नहीं ले कर अपनी मनमर्जी से बिना जांच पड़ताल करवाए जबरदस्ती उस मानचित्र से संबंधित कर भिड़ा रहे हैं। जिसमें तथाकथित मुनारे 76, 76/1, 76/2, 76/3, 76/4, तथा 77 अंकित है, जबकि यह मानचित्र उक्त संबंधित धारा-20 गजट नोटिविकेशन वर्ष 1970 का तो बिल्कुल नहीं है।

इस मानचित्र में उक्त धारा-20 गजट नोटिविकेशन वर्ष 1970 में अंकित सीमा विवरण में दर्शित मुनरो की न तो स्थिति है और न ही उक्त 1970 के गजट के अनुसार मुनरो का क्रमांक ही है। अर्थात इस मानचित्र में अंकित मुनारे नंबरों का धारा-20 गजट नोटिविकेशन संख्या 6789/14-ख-20 (382)-69 दिनांक 1 मई 1970 के अनुसार कोई भी मिलान नहीं है। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि जिस अभिलेख/मानचित्र को यह अपीलीय अधिकारी/प्रभागीय वनाधिकारी सूचना के अधिकार में मांगे जाने पर उपलब्ध करा रहे हैं, जिसमें मुनारा नम्बर 76, 76/1, 76/2, 76/3, 76/4 तथा 77 अंकित हैं, यह मानचित्र ग्राम विरगिरवाली के उक्त गजट नोटिविकेशन संख्या 6789/14-ख 20(382)-69 दिनांक 1 मई 1970, जो कि उतर प्रदेश गजट 1970 में प्रकाशित हुआ है, का नहीं है। इस तरह से बिना जांचे-परखे सूचनाएं उपलब्ध कराकर यह मुझ आवेदक को गुमराह कर रहे हैं।

DFO ने न तो वन बंदोबस्त अधिकारी द्वारा जारी धारा-20 मानचित्र को ही संज्ञान में लिया, जिसमें कि गजट में उल्ल्खित 1 से लेकर 4 मुनारों से आरक्षित वन को घेरा गया है और न ही धारा-20 गजट नोटिफिकेशन में आरक्षित वन की सीमा विवरण में मुनारों की स्थिति को, जो कि उत्तर प्रदेश गजट 18 अप्रैल 1970 के पृष्ठ संख्या 1777 पैरा 2 में उल्लिखित हैं। जबकि धारा-20 गजट में अंकित सीमा विवरण में मुनारों की स्थिति जो कि धारा-20 गजट के काॅलम-2 में अंकित है, इस अनुसार इन मुनारों की स्थिति वन बंदोबस्त अधिकारी द्वारा जारी किए गए मानचित्र से मिल भी रही है।

उत्तर प्रदेश गजट 18 अप्रैल 1970 में आरक्षित वन की सीमा विवरण में पैरा 2 पर मुनारों की स्थिति इसलिए वर्णित की गई है, ताकि सप्ष्ट रहे कि आरक्षित वन का कौन सा मुनारा गजट के अनुसार कहां पर कायम है, इन मुनारों से किस क्षेत्र को आरक्षित वन के अंतर्गत घेरा गया है और कौन क्षेत्र आरक्षित वन से बाहर है। ऐसी स्थिति में जबकि इस क्षेत्र में आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में इन प्रभागीय वनाधिकारी ने दिनांक 23 अक्टूबर 2022 को राजपुर थाने में पूर्व डी.जी.पी. तथा पूर्व अपर तहसीलदार पर FIR दर्ज करवा रखी है, इन्हें भलीभांति संबंधित अभिलेखों की जांच करवा ली जानी चाहिए थी। लेकिन जिस प्रकार अभिलेख मसूरी वन प्रभाग द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम अन्तर्गत श्री डोभाल को उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इसकी संभावना कम ही लग रही है।

website average bounce rate


इंतजार करें… जल्द ही वन विभाग के प्रमाणित नक्शे, वर्ष 1966, वर्ष 1968 और वर्ष 1970 के गजट नोटिविकेशन और वन विभाग के अधिकारियों की सभी आधी-अधूरी करतूतें प्रकाशित होंगी…


website average bounce rate

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *