उत्तराखण्ड

दूरस्थ क्षेत्रों में होगा जो भी नेटवर्क, उसी से बजेगी फोन की घंटी

देहरादून। आने वाले दिनों में उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी की समस्या का समाधान हो सकेगा। इसके लिए सरकार मोबाइल इंटरऑपरेबिलिटी सिस्टम को लागू करने की दिशा में काम कर रही है। इसके तहत ग्राहक एक ही सिम से अलग-अलग दूरसंचार कंपनियों का नेटवर्क इस्तेमाल कर पाएंगे।

इस काम को पूरा करने का जिम्मा उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) को सौंपा गया है। यूएसडीएमए के अनुरोध पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनएसडीएमए) की ओर से भारत सरकार के दूरसंचार मंत्रालय से अनुरोध किया गया था। इसके बाद इस बाबत यूएसडीएमए और दूर संचार मंत्रालय के अधिकारियों की एक दौर की बैठक भी हो चुकी है।

इसमें यूएसडीएमए के अधिकारियों ने बताया, उत्तराखंड आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील राज्य हैं, जहां खासकर सुदूर इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी की समस्या गंभीर है। ऐसे में इन इलाकों में मोबाइल इंटरऑपरेबिलिटी सिस्टम लागू किया जा सकता है। इसके तहत यदि किसी ग्राहक के पास बीएसएनएल का सिम है, लेकिन क्षेत्र विशेष में कंपनी के सिग्नल मौजूद नहीं है, जबकि जीओ का नेटवर्क मौजूद है, ऐसी स्थिति में ग्राहक का सिम अपने आप जीओ के नेटवर्क से काम करने लगेगा।

यूएसडीएमए के अधिकारियों के अनुसार, उत्तराखंड में ऐसा होने से खासकर आपदा के दौरान या किसी भी दुर्घटना की स्थिति में बड़ी मदद मिल सकती है। इस संबंध में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित उच्चाधिकारी प्राप्त समिति (एचपीसी) की हरी झंडी पहले ही मिल चुकी है। हालांकि, यह व्यवस्था केवल रिमोर्ट एरिया के लिए होगी।

प्रदेश के चारधामों में मोबाइल कनेक्टिविटी अच्छी है। बदरीनाथ में एयरटेल, बीएसएनएल और जीओ का सिम काम करता है। केदारनाथ में एयरटेल, बीएसएनएल और जीओ काम कर रहा है। वहीं, गंगोत्री में एयरटेल, जीओ और यमुनोत्री में जीओ और बीएसएनएल सेवाएं दे रहा है। प्रदेश में मुख्यत: बीएसएनएल, वोडाफोन, एयरटेल, जीओ यही चार कंपनियां अपनी सेवाएं दे रही हैं। इन्हीं कंपनियों के नेटवर्क को इंटरऑपरेबिलिटी के माध्यम से ग्राहकों में बांटने की तैयारी है।

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में अभी करीब 700 गांव ऐसे हैं, जहां आज तक मोबाइल नेटवर्क सेवा नहीं पहुंच पाई है। इनमें चीन और नेपाल सीमा पर बसे कई गांव भी शामिल हैं, जबकि 1,600 से अधिक गांव ऐसे हैं, जो टूजी सेवाओं पर निर्भर हैं।

तकनीक से आपदाओं को मात देने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके लिए भारत सरकार के दूरसंचार मंत्रालय के अधिकारियों के साथ एक दौर की बैठक हो चुकी है। मोबाइल नेटवर्क प्रदाता कंपनियों से भी पत्राचार किया जा रहा है। शीघ्र ही इस दिशा में ठोस निर्णय लिया जाएगा।

– डॉ. रंजीत सिन्हा, सचिव आपदा प्रबंधन विभाग

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